कर्मचारियों के कैशलेस उपचार की योजना अभी तक नही हुई लागू
भोपाल । देश भर में चल रही आयुष्मान योजना की तरह सरकारी कर्मचारियों के उपचार के लिए कैशलेस उपचार की योजना अभी तक लागू नहीं हो सकी है। इस योजना का प्रारुप चार साल पहले कांग्रेस सरकार के समय तैयार किया गया था। प्रारूप के अनुसार योजना में कर्मचारियों को चार श्रेणियों में बांटकर प्रीमियम निर्धारित किया जाना था।इसके बाद उन्हें सपरिवार पांच लाख रुपये तक प्रतिवर्ष कैशलेस उपचार की सुविधा दी जानी थी। विशेष परिस्थिति में 10 लाख रुपये तक का उपचार कराया जा सकता था। प्रीमियम की कुछ राशि कर्मचारियों को भी देनी थी, जिसका कर्मचारी संगठनों ने विरोध किया।उनका कहना था कि अभी उपचार का पूरा खर्च सरकार उठा रही है तो कैशलेस उपचार में उनसे भी प्रीमियम क्यों लिया जा रहा है। विरोध के चलते इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार कर्मचारी बीमा योजना लागू कर सकती है। राज्य कर्मचारी कल्याण समिति ने भी इसकी अनुशंसा की है।प्रदेश में निगम मंडल मिलाकर साढ़े चार लाख कर्मचारी-अधिकारी हैं। इनके आश्रित बच्चे और माता-पिता को भी उपचार की सुविधा दी जाती है। वर्तमान व्यवस्था में कर्मचारियों को सरकार द्वारा अनुबंधित अस्पतालों में उपचार कराने के बाद चिकित्सा प्रतिपूर्ति दी जाती है। वर्ष 2022 से चिकित्सा प्रतिपूर्ति के नियमों में बदलाव कर इसे कठिन कर दिया गया है। इस कारण प्रतिपूर्ति की राशि मिलने में दिक्कत आती है। कर्मचारी संगठन 10 वर्ष से भी अधिक समय से कैशलेस उपचार की सुुविधा की मांग कर रहे हैं।वर्ष 2018 में आयुष्मान भारत योजना शुरू होने के बाद कर्मचारी संगठनों ने इसी तरह की योजना लागू करने की मांग शुरू की थी। कांग्रेस ने इसे अपने वचन पत्र में भी शामिल किया था। वर्ष 2019 में योजना प्रारूप तैयार किया गया था। प्रीमियम की राशि निर्धारित करने के लिए मंथन चल रहा था, इसी बीच सरकार बदल गई। इसके बाद से योजना को लेकर कोई पहल नहीं की गई है। अब कर्मचारियों को उम्मीद है के चुनाव को देखते हुए सरकार इसे लागू कर सकती है। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022 से चिकित्सा प्रतिपूर्ति नियमों में परिवर्तन किया है। अब अस्पतालों को केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) में निर्धारित दरों के अनुसार ही भुगतान किया जाता है। उपचार के लिए सीजीएचएस की दरें बाजार दर से 60 प्रतिशत तक कम हैं। इस कारण अस्पताल उपचार करने में आनकानी करते हैं या फिर रोगियों से अतिरिक्त राशि लेते हैं।सरकारी अस्पताल से रेफर कराने पर ही निजी अस्पताल में उपचार कराने पर चिकित्सा प्रतिपूर्ति मिलती है। दूसरे राज्यों में उपचार के लिए चिकित्सा शिक्षा संचालनालय की स्वीकृति लेना आवश्यक है। ओपीडी में उपचार कराने पर एक बार में अधिकतम 2500 रुपये की प्रतिपूर्ति मिलती है। इससे अधिक होने पर सिविल सर्जन से लंबी बीमारी का प्रमाण पत्र लेना होता है। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022 से चिकित्सा प्रतिपूर्ति नियमों में परिवर्तन किया है। अब अस्पतालों को केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) में निर्धारित दरों के अनुसार ही भुगतान किया जाता है। उपचार के लिए सीजीएचएस की दरें बाजार दर से 60 प्रतिशत तक कम हैं। इस कारण अस्पताल उपचार करने में आनकानी करते हैं या फिर रोगियों से अतिरिक्त राशि लेते हैं। सरकारी अस्पताल से रेफर कराने पर ही निजी अस्पताल में उपचार कराने पर चिकित्सा प्रतिपूर्ति मिलती है। दूसरे राज्यों में उपचार के लिए चिकित्सा शिक्षा संचालनालय की स्वीकृति लेना आवश्यक है। ओपीडी में उपचार कराने पर एक बार में अधिकतम 2500 रुपये की प्रतिपूर्ति मिलती है। इससे अधिक होने पर सिविल सर्जन से लंबी बीमारी का प्रमाण पत्र लेना होता है। कैशलेस योजना के तहत कर्मचारी-अधिकारी को उनके वेतन के अनुसार ए, बी, सी और डी श्रेणी में बांटा जाना है। हर श्रेणी के लिए प्रीमियम निर्धारित किया जाना है। इसके साथ ही अस्पतालों से अनुबंध किया जाएगा। चिन्हित अस्पताल में कर्मचारी या उसके स्वजन एक वर्ष में पांच लाख रुपये तक का उपचार करा सकेंगे। इस बारे में कर्मचारी कल्याण समिति के सदस्य रमेश चंद्र शर्मा का कहना है कि हमने प्रस्ताव बनाकर भेज दिया है। सरकार कर्मचारी स्वास्थ्य बीमा योजना को जल्द ही लागू कर सकती है।