मुंबई। चुनाव में सफलता तभी मिलती है जब वोट बैंक एकजुट बना रहे। इसमें विभाजन हुआ तो नुकसान की काफी संभावना रहती है। इस बार महाराष्ट्र में कुछ इसी तरह की चुनौतियों को भाजपा को जूझना पड़ रहा है। भाजपा, जो 2019 के चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी रही थी, इस बार वोट कटवाने वाली समस्याओं का सामना कर रही है। जबकि भाजपा के पास शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी अजीत गुट का समर्थन है, फिर भी वह कई सीटों पर परेशान है।


मनसे के उम्मीदवार भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती 
मुंबई में, राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने लगभग 25 उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे भाजपा की स्थिति कमजोर हुई है। मनसे के उम्मीदवार भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए हैं। मराठवाड़ा में, मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जारांगे पाटिल ने भाजपा और उसके सहयोगियों के खिलाफ कई सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। इस क्षेत्र में भाजपा की स्थिति पिछले लोकसभा चुनावों में भी कमजोर हुई थी, जहां उसे कई सीटें गंवानी पड़ी थीं। मनोज जारांगे ने हाल ही में यह स्पष्ट किया है कि वह किन सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं हटाएंगे, जिसमें अधिकांश सीटें महायुती के कब्जे में हैं। जारांगे ने 13 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं, जिनमें से सात पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है।


मराठवाड़ा की राजनीति में नया गठजोड़ बन रहा 
भाजपा को मराठा समुदाय के ओबीसी में शामिल होने की मांग के कारण धर्म संकट का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, राज्य की शिंदे सरकार ने पहले ही मराठा समुदाय के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी, लेकिन यह मुद्दा अब भी राजनीति में गर्म है। अब सवाल यह है कि मनोज जारांगे का चुनावी मैदान में उतरना भाजपा के लिए किस तरह का लाभ या हानि साबित होगा। क्या वे भाजपा को कमजोर करेंगे या भाजपा विरोधी वोटों में सेंधमारी करेंगे? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मराठवाड़ा की राजनीति में एक नया गठजोड़ बन रहा है, जिसमें मराठा, दलित, और अल्पसंख्यक समुदाय शामिल हैं, जो महायुती के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। इस चुनावी मौसम में, भाजपा ओबीसी वोटर्स को लुभाने की कोशिश कर रही है, लेकिन पिछले चुनावों के नतीजों के आधार पर, मराठाओं का प्रभाव अभी भी मजबूत है।