जाति जनगणना पर मौन क्यों हैं सिद्धारमैया? राहुल गांधी के सपनों की राह में रोड़ा?

बिहार से लेकर तेलंगाना तक राहुल गांधी जहां भी जाते हैं जाति जनगणना की बात करते हैं. उनका मेन एजेंडा ही जाति जनगणना और आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा क्रॉस करना है. लेकिन अब कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक इसी जात जनगणना में उलझ गया है. गुरुवार को सीएम सिद्धारमैया ने जाति जनगणना पर स्पेशल कैबिनेट मीटिंग बुलाई, लंबी चर्चा हुई. लेकिन कोई फैसला नहीं हो पाया. वजह सिर्फ एक ही है, एक को खुश करने के चक्कर में कई जातियां नाराज हो गई हैं. कर्नाटक की राजनीति के जानकारों का कहना है कि सिद्धारमैया सरकार के लिए यह गले की फांस बन गया है. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि इससे निकलें कैसे.
कर्नाटक सरकार ने गुरुवार को स्पेशल कैबिनेट मीटिंग बुलाई, जिसमें सोशल-इकनॉमिक एंड एजुकेशनल सर्वे रिपोर्ट यानी जाति जनगणना पर चर्चा होनी थी. रिपोर्ट में ओबीसी कोटा को 51% तक बढ़ाने का सुझाव है, लेकिन वोकालिगा और लिंगायत जैसे प्रभावशाली समुदायों ने इसे अनसाइंटिफिक करार दे रहे हैं. वे ओबीसी कोटा बढ़ाने का विरोध कर रहे हैं. उनका तर्क है कि रिपोर्ट में उनका हक मारा जा रहा है. न्यूज18 को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, बैठक में इसी वजह से कोई अंतिम निर्णय नहीं हो सका. स्पेशल कैबिनेट ने रिपोर्ट को एक सब-कमेटी या विशेषज्ञ पैनल को भेजने पर विचार किया, लेकिन इस पर सहमति नहीं बनी. कहा जा रहा कि सिद्धारमैया सरकार इस मुद्दे पर फिर बाद में चर्चा करेगी.
कहां फंसा पेंच
कांग्रेस सरकार के लिए इसे पूरा कर पाना बड़ी चुनौती है, क्योंकि वोटबैंक की राजनीति आड़े आ रही है. राज्य में वोटरों का एक बड़ा वर्ग वोकालिगा और लिंगायत समुदाय से आने वाले मंत्रियों ने अपनी जातियों के गलत वर्गीकरण और ओबीसी में विभाजन पर आपत्ति जताई. सूत्रों का तो ये भी कहना है कि वे इसे खारिज करने की मांग कर रहे हैं और फिर से गणना की डिमांड कर रहे हैं. जेडीएस की भी मांग है कि नई जाति गणना कराई जाए. बीजेपी इसे सरकार की नाकामी बता रही है.
सोशल मीडिया में रिएक्शन
सोशल मीडिया में तमाम बुद्धिजीवी लोगों ने कमेंट लिखे हैं. प्रमोद मिश्रा नाम के एक शख्स ने लिखा, कर्नाटक में जाति गणना पर कैबिनेट का बिना फैसले के खत्म होना कांग्रेस की कमजोरी दिखाता है. सिद्धारमैया वोटबैंक की राजनीति में फंस गए हैं. सोफिया अहमद लिखती हैं, जाति गणना पर फैसला टालना सही कदम हो सकता है, क्योंकि जल्दबाजी में लिया गया निर्णय विवाद बढ़ा सकता है, लेकिन सरकार को पारदर्शिता दिखानी होगी. विजय शर्मा ने लिखा, वोकालिगा और लिंगायत का विरोध कांग्रेस के लिए सिरदर्द बन गया. बिना फैसले के बैठक खत्म होना सिद्धारमैया की रणनीति की नाकामी है.