लखनऊ  कुंवर रतनजीत प्रताप नरैन सिंह यानी आरपीएन सिंह आखिर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो गए हैं। राहुल गांधी की कोर टीम में शामिल रहे आरपीएन को अपने पाले में लाकर बीजेपी ने एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। यह कांग्रेस पार्टी के लिए जितना बड़ा झटका है, उतनी ही चिंता समाजवादी पार्टी की भी बढ़ सकती है। आरपीएन के आने से भगवा दल को ना सिर्फ यूपी चुनाव में फायदा मिलने की उम्मीद है, बल्कि पार्टी को झारखंड में भी उनका इस्तेमाल कर सकती है। आरपीएन सिंह कांग्रेस के झारखंड प्रभारी के नाते वहां काम कर रहे थे और बीजेपी उनके अनुभव का फायदा उठा सकती है। 

स्वामी की काट बनेंगे आरपीएन?

आरपीएन सिंह के बीजेपी में शामिल होने की खबर आते ही कांग्रेस ने उन्हें कायर बता डाला तो हाल ही में भाजपा छोड़ सपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य यह जताने की कोशिश करने लगे कि वह आरपीएन सिंह से बड़े प्रभावशाली नेता हैं। इसकी वजह यह है कि आरपीएन सिंह भी उसी पडरौना के 'राजा' और नेता हैं, जहां से स्वामी प्रसाद मौर्य अभी विधायक हैं और एक बार फिर सपा के टिकट पर लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में आरपीएन ने स्वामी प्रसाद मौर्य को मात दी थी। तब स्वामी बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। 

ओबीसी वोट बैंक साधने की कोशिश

पडरौना राजघराने के राजा आरपीएन सिंह कुर्मी समुदाय से आते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य की तरह वह भी पूर्वांचल के बड़े ओबीसी नेता हैं। बीजेपी ने आरपीएन को पार्टी में लाकर स्वामी की काट निकालने का प्रयास किया है। यह भी बताया जा रहा है कि बीजेपी स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ आरपीएन सिंह को उतार सकती है। इससे स्वामी प्रदेश के दूसरे हिस्सों में प्रचार पर अधिक समय नहीं दे पाएंगे।

परसेप्शन की लड़ाई में बीजेपी ने बनाई बढ़त

योगी सरकार के तीन मंत्रियों स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी के साथ बीजेपी के एक दर्जन से अधिक विधायकों को तोड़कर समाजवादी पार्टी ने जिस परसेप्शन की लड़ाई में जीतने का दावा किया था, उसमें भगवा कैंप बाजी मारता दिख रहा है। आरपीएन सिंह के आने से पहले बीजेपी ने खुद अखिलेश के परिवार में सेंध लगाकर अपर्णा यादव और मुलायम सिंह के साढ़ू को अपने पाले में कर लिया। इसके अलावा सपा के कई और नेता बीजेपी में आ गए हैं।  

यूपी से बाहर भी होगा फायदा

बीजेपी को आरपीएन के आने से सिर्फ यूपी में नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर फायदा होने की उम्मीद है। आरपीएन सिंह कभी राहुल गांधी की कोर टीम में शामिल थे और कांग्रेस के अच्छे नेताओं में उनकी गिनती थी। बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद जैसे नेताओं को पहले ही अपने पाले में कर लिया था और अब आरपीएन सिंह के आने से देश की सबसे पुरानी पार्टी का जख्म और गहरा हो गया। आरपीएन सिंह के अनुभव का फायदा बीजेपी झारखंड में भी उठा सकती है, जहां के वह अभी प्रभारी थी और काफी सक्रियता से काम कर रहे थे।