इस्लामाबाद । पाकिस्तानी सेना द्वारा सभी को पकड़ने और किसी को भी न बख्शने के फैसले के बाद, पाकिस्तान सरकार सैन्य अदालतों की स्थापना पर विचार कर रही है। वर्तमान सरकार पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान व आतंकवाद और सेना अधिनियम के नियमों के तहत गिरफ्तार पीटीआई नेताओं व कार्यकर्ताओं पर विशेष ध्यान दे रही है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश उमर अत्ता बंदियाल सहित और न्यायपालिका में कई अन्य लोगों पर भरोसा नहीं कर रही। उनका मानना है कि वे खान और उनकी पार्टी के नेताओं को कानूनी कवर दे रहे हैं।
सूत्र ने कहा, आप सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बांदियाल और अन्य न्यायाधीशों के खिलाफ संसद में गुस्सा देख सकते हैं। 16 दिसंबर 2014, को आर्मी पब्लिक स्कूल पर हुए आतंकी हमलों के बाद तैयार नेशनल एक्शन प्लान (एनएपी) और इसकी 20-सूत्रीय कार्य योजना के हिस्से के रूप में, 7 जनवरी, 2015 को दो साल की अवधि के लिए पाकिस्तान में सैन्य अदालतों की स्थापना की गई थी। हमले में बच्चों सहित कम से कम 148 लोग मारे गए। सैन्य अदालतों ने संयुक्त राष्ट्र सहित वैश्विक मानवाधिकार निकायों द्वारा गंभीर आलोचना झेली, जबकि विपक्षी राजनीतिक दलों ने गुप्त अदालती परीक्षणों के माध्यम से सैन्य अदालतों में नागरिकों पर मुकदमा चलाने पर सवाल उठाए।
पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव, जिन्हें पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा बलूचिस्तान से गिरफ्तार किया गया था और हिरासत में लिया गया था, पर भी पाकिस्तानी सेना अधिनियम और सरकारी गोपनीयता अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया गया था। उन्हें एक पाकिस्तानी सैन्य अदालत द्वारा मौत की सजा दी गई थी, जिसे बाद में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने पलट दिया था। पाकिस्तानी सरकार को सैन्य अदालत के मौत की सजा देने के फैसले को लागू करने से रोक दिया था और एक सिविल कोर्ट में मुकदमा चलाने का निर्देश दिया था।