नई दिल्ली । एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, खुर्शीद ने कहा, ‘सरकार को बताना चाहिए कि समान नागरिक संहिता क्या है? संविधान में उल्लेख है कि एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास किया जाएगा, लेकिन इसकी स्पष्ट परिभाषा नहीं है। सरकार ने कभी इस बारे में बताया नहीं है कि जब भी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होगा तो वह हिंदू कोड होगा। जब यह यूसीसी की बात करेगा तो यह हिंदू कोड लागू करेगा। यह किसी भी धर्म के लिए हो सकता है। सरकार को बताना चाहिए कि इसकी परिभाषा क्या है, तभी हम कोई प्रतिक्रिया दे सकते हैं।’
कांग्रेस नेता ने सरकार की कार्यशैली पर संदेह जताते हुए आरोप लगाया कि समाज में भेदभाव फैलाया जा रहा है और यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले में भी इसी तरह के व्यवहार की संभावना है। वहीं कांग्रेस पार्टी के अंदर की स्थिति और भविष्य के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘भविष्य कोई नहीं जानता है, लेकिन वर्तमान वास्तविकता यह है कि कांग्रेस पार्टी की स्थिरता गांधी परिवार में हमारी आस्था पर निर्भर करती है। हम यह कहने में संकोच नहीं करते कि आज गांधी परिवार, कांग्रेस और उसके भविष्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।’ वहीं उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण और वक्फ मामलों के राज्य मंत्री दानिश अंसारी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बोलते हुए कहा कि राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार कौमी चौपाल के तहत चर्चा कर समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में कदम उठाएगी। उधर विशेष रूप से, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि राज्य के लिए समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए एक ‘उच्चस्तरीय’ विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाएगा। इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने भी बीते सोमवार को कहा था कि राज्य में यूसीसी के कार्यान्वयन के मुद्दे की जांच की जा रही है।
इस बीच, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने मंगलवार को समान नागरिक संहिता को ‘एक असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी कदम’ करार दिया, और कहा कि सरकार द्वारा महंगाई, अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी से ध्यान भटकाने का प्रयास किया जा रहा है। बता दें कि बीजेपी के अंदर से पार्टी स्तर पर इसे लागू करने की मांग हो चुकी है। वस्तुस्थिति ये भी है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने इसे अपने घोषणा पत्र में भी शामिल किया था। समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एक जैसी स्थिति प्रदान करती है। इसका पालन धर्म से परे सभी के लिए जरूरी होता है। हां, संविधान का अनुच्छेद 44कहता है कि शासन भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा। अनुच्छेद-44 संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में एक है। यानि कोई भी राज्य अगर चाहे तो इसको लागू कर सकता है। संविधान उसको इसकी इजाजत देता है। अनुच्छेद-37 में परिभाषित है कि राज्य के नीति निदेशक प्रावधानों को कोर्ट में बदला नहीं जा सकता, लेकिन इसमें जो व्यवस्था की जाएगी वो सुशासन व्यवस्था की प्रवृत्ति के अनुकूल होने चाहिए।